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Showing posts from 2022

Leadership Lessons from Cricket Field - Part 2: The Formation Years

A team sport teaches you a lot. It doesn't matter, in which part of the world you play it, doesn't matter,  which background you come from, the sport is generous enough to offer everyone. The reason, two of the shrewdest & successful captains of the history of India's most popular sport, cricket, comes from contrast backgrounds. Sourav Ganguly has rich and classy background, comes from a metropolitan city, but the game equally celebrated MS Dhoni, who had a humble background and comes from a much smaller town. I come from even smaller town. I have observed the game very closely and when Iook back, I am overwhelmed by the fact that how enriched I am due to  this game. I have never formed a team or have been a founder member of any team. I rather chose to sneak in and be part of a team, which was formed before my arrival.  It has its own challenges but many advantages too. Since I was never a founder member, I never had the authority to play at my will in any of the teams

Leadership Lessons from Cricket Field - Part 3: Dropped Catch

Winters of 2002 was not different than any other year. The chilling winter has thou, started to recede. But, it was still harsh enough on hands on the cricket grounds. 13th February, a day just after my birthday, we had to play semifinals of a tournament in Hayaghat, against a known team (team supported by member of parliament, mentiond in previous episodes) from the same ground we practice. The opponents were superior and tough. We got to bat first. The conditions were chilling and ball was swinging a lot. Our gritty openers took a lot on their ribcage and we succeeded to put up a fighting total on the board. I scored very few runs, just reached a double digit. While fielding in slips, I injured my index finger badly. I asked for my replacement on field, to which my captain responded, "you are twice as better fielder with one hand than those on bench, so continue". As a favour, he released me from the slips and positioned me at point, thinking most of the balls will pass by

पाठक चाचा

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मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ जन्मे पाठक चाचा दुनिया के भले लोगों में से एक थे। प्रकृति ने उनके मुख पर ये मुस्कान सदैव के लिए रख छोड़ा था। कटा हुआ ऊपरी होंठ (cleft lip), उनकी पहचान भी थी और समस्या भी। आजकल तो इसका इलाज आसान है, उन दिनों भी रहा होगा, किंतु बहुत ही सामान्य परिवार से आने वाले पाठक चाचा का इलाज नहीं हुआ और वो ऐसे ही रहे। पाठक चाचा से जो भी मिलता था, उनके कटे होंठ सहसा ही ध्यान अपनी ओर खींच लेता। मैंने भी जब उनको पहली बार देखा तो वोही देखा। हालांकि समय के साथ जब उनको जाना, तब उनकी यह तथाकथिक विकृति हमें विकृति नजर आना बंद हो गई। अक्सर ही सुबह की चाय के वक्त वह हमारे यहां आया करते थे। चाय बस बहाना था, वो सुबह की सैर लेते और अपने मित्र, यानी मेरे पिताजी से मिलने आ जाते। हमारे कई पड़ोसियों को उनका सुबह सुबह आना अच्छा नहीं लगता था। उनका मानना था, की सुबह सुबह विकृत चेहरा देखना अशुभ होता है। मुझे उन लोगों की सोच पर आज भी दया आती है। उनके उसी भगवान ने उन्हें भी बनाया। भगवान की कृति अशुभ कैसे? जो नास्तिक हैं, उनके लिए, प्रकृति की कृति अशुभ कैसे? बहरहाल, हम बच्चे पाठक चाच

मेमने

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शरद ऋतु की छुट्टियां थीं। मैं अपने शहर आया था। सर्दी बढ़ रही थी मानो साइबेरिया हो। ऊपर से कभी कभी सर्द हवाएं, जिसे हमारे यहां शीत लहर या सीतलहरी भी कहते हैं। छुट्टियां में,  सर्द  दोपहर में, धूप सेंकने के अलावा क्या काम सर्वोपरि हो? तो मैं रोज दोपहर छत पर धूप सेंकने चला जाता था। दोपहर शांत होती है हमारे यहां की। ठंड में चिड़ियों की भी चहचहाहट थोड़ी कम होती है। ऐसे में दूर एक छत पर दो मेमने शांति भंग किया करते थे। रोज यहीं चलता रहा, छत, धूप और मेमनों का शोर।  फिर एक दिन मोहल्ले के उसी कोने से ढोल ताशों की आवाज आई। मेमने उस दिन छत पर नही आए। मन को अचानक लगा की शायद वो मेमने काटने के लिए न आए हों। और आज ढोल ताशों के बीच थाली में परोस दिए गए हों। मन सहसा विचलित हो गया, उन अनजाने मेमनो के लिए। अगले दिन सुबह धूप नही खिली, फिर भी किसी कारण छत पर गया।। मुड़ कर एक बार उस छत पर देखा, जहां से मेमनो की आवाजें आती थी। दोनो काले मेमने चाव से पुआल खा रहे थे। मन ऐसे प्रफुल्लित हुआ मानो कोई अपना मौत के मुंह से बच निकला हो। "अखिल"